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सात दिन तो क्या सात साल तक लगातार इस्तेमाल करने के बाद भी कभी कोई महिला या लड़की फेयर एंड लवली लगाकर गोरी नहीं हुई, और तो और इमोशनल ब्लैकमेलिंग की हद तो तब हो गईं जब टेक्नोलॉजी बदलने के साथ इस क्रीम के दावे भी लगातार बदलते रहे। दावा किया जाने लगा कि सिर्फ गोरी रंगत ही नहीं बल्कि मल्टीविटामिन, स्किन पॉलिशिंग और एचडी ग्लो भी इस क्रीम से पाया जा सकता है।
अगर सच में कोई क्रीम लगाकर गोरी रंगत मिल सकती तो सांवले सलोने रूप का अस्तित्व ही मिट गया होता, मैट्रिमोनियल विज्ञापनों में गोरी और सुंदर लड़की चाहिए जैसी शर्त ना रखी जाती, किसी भी बच्ची को सांवले रंग के कारण अपने आत्मविश्वास पर चोट ना खानी पड़ती, गोरे रंग की अहमियत कम हो जाती और सबसे ज्यादा और महत्वपूर्ण असर ये होता की गोरे रंग पर कुछ लोगों का हद से ज्यादा इतराना कम हो जाता।
ऐसा नहीं है कि भारतीय महिलाएं इस तरह के झूठे दावों और जालसाजी को समझती नहीं है, बेशक वो भली भांति जानती हैं कि इस क्रीम से ज्यादा कुछ नहीं होने वाला लेकिन फिर भी मजबूर हैं उस समाजिक मानसिकता से जो उन्हें सांवला रंग होने के कारण दूसरों से कमतर आंकती है। एक उम्मीद की किरण मानकर महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुष भी फेयर एंड हैंडसम जैसी क्रीम को घर लाने लगे और इसका फायदा विदेशी कंपनियां मालामाल होकर कमाती रहीं।
लगातार मुनाफा कमा रही ये क्रीम अब जल्द ही बदले हुए नाम के साथ मार्केट में आएगी, मैन्युफैक्चरर्स अब क्रीम के नाम से 'fair' शब्द हटा देंगे। सवाल उठता है कि जब सब कुछ सही चल रहा है तो कंपनी ऐसा कदम क्यों उठा रही है, क्या उसे अपनी भूल का अहसास हो गया है, क्या उसे महिलाओं की इमोशनल ब्लैकमेलिंग करके आत्मग्लानि हो रही है, क्या महिलाओं ने कंपनी के झूठे झांसों में आना छोड़ दिया है, क्या समाज ने ये मान लिया है कि गोरे रंग का सुंदरता से कोई रिश्ता नहीं है, क्या गोरे और सांवले के बीच भेद भाव मिट गया है?......जी नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है बल्कि कंपनी के ऐसा कदम उठाने के पीछे अमेरिका सहित कई देशों में अश्वेतों के अधिकार को लेकर किए का रहे आंदोलन और नस्ली मानसिकता के खिलाफ मुहिम हैं जो जॉर्ज फ्लायड की मौत के बाद आक्रामक हो गए है। जिसके तहत पहले जॉनसन एंड जॉनसन ने क्लीन एंड क्लियर जैसे प्रोडक्ट के विज्ञापन को बंद किया और अब hul भी फेयर एंड लवली को ग्लो एंड लवली नाम से लॉन्च करेगी। इस बाबत फेयर एंड लवली के डिवीजन अध्यक्ष सनी जैन का कहना है वो इस बात को समझते हैं कि फेयर, व्हाइट और लाइट जैसे शब्द सुंदरता की एकपक्षीय परिभाषा को जाहिर करते हैं, जोकि सही नहीं है, वो अपनी भूल को सुधारना चाहते हैं।
मेरा यही मानना है कि देर से ही सही वो अपनी भूल तो मान रहे है। लेकिन इससे अब फायदा क्या होगा? क्या अब तक जिन करोड़ों महिलाओं के साथ छल हुआ है क्या वो पाप धुल पाएगा, काले और गोरे के बीच के फर्क को जितना बढ़ा चढ़ा कर दिखाया गया क्या वो कम किया जा सकेगा।
परिवर्तन होगा तो बस इतना कि सांवली और गहरी रंगत वाली लड़की को अब अच्छा रिश्ता ना मिल पाने के कारण शुभचिंतकों और करीबियों द्वारा गोरे होने के लिए दूध बेसन के साथ फेयर एंड लवली एडवांस इस्तेमाल करने का सुझाव देना जरूर बन्द हो जाएगा।
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