फ्रेंड्स, ना केवल महान ग्रन्थ महाभारत बल्कि सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में द्रौपदी के अलावा कोई अन्य स्त्री ऐसी नहीं मिलेगी जिसके एक साथ पांच पति रहे हों। आज हम आपको बताएँगे की आखिर द्रौपदी के साथ ऐसा क्या हुआ था जो उसे पांच पतियों को अपनाना पड़ा।
कौरवों द्वारा पांडवों को लक्ष्यग्रह में जलाकर मारने का प्रयास किया गया, जहाँ से पांडव बचकर भाग निकले और अज्ञातवास में ब्राह्मण रूप में छुपकर रहने लगे, केवल कृष्ण और विदुर जी को ही उनके जीवित होने का पता था। उसी समय द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद ने द्रौपदी के लिए एक स्वयंवर आयोजित किया था। जिसे पांडवों में से एक अर्जुन ने जीत कर द्रौपदी से विवाह किया। अर्जुन और चारों भाई द्रौपदी को लेकर अपनी मां के पास पहुंचे। कुंती उस समय भोजन पका रही थी। वे सभी अंदर आए और बोले "मां, देखो आज हम क्या लेकर आए हैं।" ऊपर देखे बिना कुंती बोली "जो भी है आपस में बांट लो।" उस समय वे सभी भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन कर रहे थे. भिक्षा में जो भी मिलता था वे सभी आपस में बाट कर खाते थे।
अपनी माँ के कहे वाक्यों को पांडव झुठला नहीं सकते थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आया की अब क्या करें। वे वापस द्रुपद के महल में गए। वहां कृष्ण और व्यास जी भी मौजूद थे। पांडवों ने द्रुपद से कहा "हमारी मां हमें जो भी आदेश देती है, तो चाहे वह कुछ भी हो, हमें उसे पूरा करना होता है। अर्जुन अकेला उससे विवाह नहीं कर सकता। या तो हम पांचों उससे विवाह करेंगे, या आप अपनी बेटी को वापस ले सकते हैं।"
यह सुनकर द्रौपदी बहुत दुखी हुई। वह कृष्ण और व्यास जी से कहने लगी की उसने ऐसा क्या पाप किया है जो उस के साथ ऐसा हो रहा है। फिर ऋषि व्यास ने द्रौपदी को उसका पूर्व जन्म दिखाया कि अपने पिछले जन्म में वह नल और दमयंती की बेटी थी।
नल विदर्भ का राजा था। वह दुनिया का सबसे बढ़िया रसोइया था। पिछले जन्म में द्रौपदी अनन्य शिव भक्त थी। उसकी कठिन तपस्या से खुश होकर शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। वह बोली "महादेव, मैं एक न्यायप्रिय पति, एक शक्तिशाली पति, एक बहादुर पति, एक बुद्धिमान पति और एक सुंदर पति चाहती हूं।"
शिव ने पांच बार 'तथास्तु" कहा और अंतर्ध्यान हो गए। जब द्रौपदी ने अपने पूर्वजन्म की यह झलक देखी तो उसे एहसास हुआ कि यह उसके अपने कर्म थे। हालांकि वह एक ही पति चाहती थी, जिसमें ये सभी गुण हों, मगर उसने अनजाने में पांच पति मांग लिए थे। शिव ने उसकी वह इच्छा पूरी कर दी थी। फिर उसने पांचों से विवाह कर लिया।
कृष्ण ने हस्तक्षेप करके द्रौपदी और उसके पांच पतियों के बीच एक वैवाहिक समझौते का सुझाव दिया। उन्होंने उससे कहा "एक साल तक हर भाई के साथ रहो। अगर उस एक साल के दौरान दूसरा भाई अनजाने में भी तुम्हारे शयनकक्ष में आ जाए, तो उसे एक साल के लिए वनवास जाना पड़ेगा।" और इस तरह द्रौपदी पांचों पांडव भाइयों को एक साथ जोड़कर रखने वाली शक्ति बन गई।
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कौरवों द्वारा पांडवों को लक्ष्यग्रह में जलाकर मारने का प्रयास किया गया, जहाँ से पांडव बचकर भाग निकले और अज्ञातवास में ब्राह्मण रूप में छुपकर रहने लगे, केवल कृष्ण और विदुर जी को ही उनके जीवित होने का पता था। उसी समय द्रोपदी के पिता राजा द्रुपद ने द्रौपदी के लिए एक स्वयंवर आयोजित किया था। जिसे पांडवों में से एक अर्जुन ने जीत कर द्रौपदी से विवाह किया। अर्जुन और चारों भाई द्रौपदी को लेकर अपनी मां के पास पहुंचे। कुंती उस समय भोजन पका रही थी। वे सभी अंदर आए और बोले "मां, देखो आज हम क्या लेकर आए हैं।" ऊपर देखे बिना कुंती बोली "जो भी है आपस में बांट लो।" उस समय वे सभी भिक्षा मांगकर अपना जीवनयापन कर रहे थे. भिक्षा में जो भी मिलता था वे सभी आपस में बाट कर खाते थे।
अपनी माँ के कहे वाक्यों को पांडव झुठला नहीं सकते थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आया की अब क्या करें। वे वापस द्रुपद के महल में गए। वहां कृष्ण और व्यास जी भी मौजूद थे। पांडवों ने द्रुपद से कहा "हमारी मां हमें जो भी आदेश देती है, तो चाहे वह कुछ भी हो, हमें उसे पूरा करना होता है। अर्जुन अकेला उससे विवाह नहीं कर सकता। या तो हम पांचों उससे विवाह करेंगे, या आप अपनी बेटी को वापस ले सकते हैं।"
यह सुनकर द्रौपदी बहुत दुखी हुई। वह कृष्ण और व्यास जी से कहने लगी की उसने ऐसा क्या पाप किया है जो उस के साथ ऐसा हो रहा है। फिर ऋषि व्यास ने द्रौपदी को उसका पूर्व जन्म दिखाया कि अपने पिछले जन्म में वह नल और दमयंती की बेटी थी।
नल विदर्भ का राजा था। वह दुनिया का सबसे बढ़िया रसोइया था। पिछले जन्म में द्रौपदी अनन्य शिव भक्त थी। उसकी कठिन तपस्या से खुश होकर शिव प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा। वह बोली "महादेव, मैं एक न्यायप्रिय पति, एक शक्तिशाली पति, एक बहादुर पति, एक बुद्धिमान पति और एक सुंदर पति चाहती हूं।"
शिव ने पांच बार 'तथास्तु" कहा और अंतर्ध्यान हो गए। जब द्रौपदी ने अपने पूर्वजन्म की यह झलक देखी तो उसे एहसास हुआ कि यह उसके अपने कर्म थे। हालांकि वह एक ही पति चाहती थी, जिसमें ये सभी गुण हों, मगर उसने अनजाने में पांच पति मांग लिए थे। शिव ने उसकी वह इच्छा पूरी कर दी थी। फिर उसने पांचों से विवाह कर लिया।
कृष्ण ने हस्तक्षेप करके द्रौपदी और उसके पांच पतियों के बीच एक वैवाहिक समझौते का सुझाव दिया। उन्होंने उससे कहा "एक साल तक हर भाई के साथ रहो। अगर उस एक साल के दौरान दूसरा भाई अनजाने में भी तुम्हारे शयनकक्ष में आ जाए, तो उसे एक साल के लिए वनवास जाना पड़ेगा।" और इस तरह द्रौपदी पांचों पांडव भाइयों को एक साथ जोड़कर रखने वाली शक्ति बन गई।
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