दोस्तों, मृत्यु इस दुनिया का एक ऐसा सत्य है जिसे झुठला पाना किसी के वश में नहीं है। जिसने भी इस धरती पर जन्म लिया उसे एक ना एक दिन मरना ही है। मृत्यु के बाद किसी परिजन का अंतिम संस्कार बेहद दुखद क्षण होता है तथा विशेष जिम्मेदारी भी। यदि अंतिम संस्कार सही विधि पूर्वक ना किया जाये तो मृतात्मा को कष्ट होता है ये बड़ी अनहोनी भी हो सकती है।
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शव को भूमि पर रखना -
भूमि पर प्राण त्याग करने से व्यक्ति को मुक्ति प्राप्त करने में सहजता रहती है अन्यथा उसकी आत्मा वायुलोक में भटकती रहती है। मृत्यु के बाद शव के सिर को दक्षिण दिशा की ओर रखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार दक्षिण की दिशा मृत्यु के देवता यमराज की मानी गई है। इस दिशा में शव का सिर रख हम उसे मृत्यु के देवता को समर्पित कर देते हैं।सूर्यास्त के बाद नहीं होता दाह संस्कार -
यदि किसी की मृत्यु सूर्यास्त के बाद हुई है तो उसका दाह संस्कार अगले दिन सूर्योदय के बाद करना चाहिए। सूर्यास्त के बाद अंतिम संस्कार करने से मृतात्मा को इस लोक से दूसरे लोक जाने में कष्ट होता है।छेद वाले घड़े में जल भरकर परिक्रमा -
शव को चिता पर रखकर एक छेद वाले घड़े में जल भरकर परिक्रमा की जाती हैऔर अंत में घड़ा को तोड़ दिया जाता है, इसका अर्थ है कि जीवन एक घड़े के समान है जिसमे से आयु रुपी पानी ख़त्म होता रहता है और अंत में घड़ा रुपी जीवन समाप्त हो जाता है। ऐसा व्यक्ति की आत्मा का उसके शरीर से मोहभंग करने के लिए किया जाता है।शव को जलाना -
हिन्दू धर्म में मृत व्यक्ति के पार्थिव शरीर को जलाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से शरीर का एक-एक कण खत्म हो जाता है और आत्मा के पास उस शरीर से वापस जुड़ने का कोई चारा नहीं बचता।शव के सर पर डंडे से मारना -
यह कपाल क्रिया कहलाती है। लगभग 90% तक जल जाने के बाद शव के सर पर डंडा मारकर उसे तोड़ दिया जाता है ताकि कोई तांत्रिक उसकी आत्मा को अपने वश में ना कर ले। तथा कपाल क्रिया इसलिए भी की जाती है कि व्यक्ति को अगले जन्म में इस जन्म की यादें ना आएं।---------------------------
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