नवरात्रि का त्यौहार शुरू हो चुका है, घर-घर में माँ शेरों वाली का दरबार सजा है। माता की चौकी, जगराता, गरबा, डांडिया आदि के बहाने अपने-अपने तरीके और रीति रिवाज़ के अनुसार भक्त माँ की भक्ति में डूबे दिखाई दे रहे हैं। फ्रेंड्स आप सभी नवरात्री मनाने के पीछे का कारण जानते हैं? अगर नहीं तो आज मैं आपको बता रही हूँ।
दैत्यराज महिषासुर की कठोर तपस्या और उपासना से ख़ुश होकर देवताओं ने उसे अजेय और अमर होने का वर प्रदान कर दिया था। लेकिन उस वरदान को पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। महिषासुर ने देवताओं को स्वर्ग से निकाल कर स्वयं स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया, इस से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवतओं के भी अधिकार छीन लिए और उन्हें निकाल कर स्वयं स्वर्गलोक का मालिक बन बैठा।
देवताओं ने बहुत प्रयत्न किया लेकिन महिषासुर को युद्ध में पराजित नहीं कर पाए। तब महिषासुर का वध करने के लिए देवी दुर्गा का अवतरण हुआ सभी देवो ने अपनी अमोघ शक्तियों को एक जगह इकट्ठा करके आदिशक्ति का सृजन किया, और उन्हें दुर्गा का स्वरुप दिया। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश ,विष्णु के तेज से आठ भुजाये, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितम्ब ,ब्रह्मा के तेज से चरण, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से नेत्र ,एवं अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न भिन्न अंग बने। देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए जिससे वह अति बलवान हो गईं। नौ दिनों तक लगातार माँ दुर्गा का महिषासुर से युद्ध संग्राम चला और अन्त में नवें दिन महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा 'महिषासुरमर्दिनी' कहलाईं। तभी से माँ दुर्गा की आराधना और उनसे शक्ति-सिद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है।
मां पार्वती नें तो हठ ले ली थी की जब तक वह पुनः गोरी और रूपवान नहीं हो जाएंगी तब तक तप करती ही रहेंगी। शेर भी भूखा प्यासा उनके सामने बरसों तक बैठा रहा। अंत में शिवजी प्रकट हुए और मां पार्वती को रूपवती होने का वरदान दे कर अंतरध्यान हो गए। शिव जी के जाने के बाद माँ पार्वती ने गंगा स्नान किया तब उनके अंदर से एक और देवी प्रकट हुई, जिनका स्वरूप श्याम अर्थात सांवला था उन्हे 'कौशकी' नाम से जाना गया। और माँ पार्वती 'गोरी' बन गईं। और तभी से उनका नाम गौरी पड़ा।
जब मां पार्वती वापस लौट रही थीं तब उन्होने देखा की वहां एक शेर बैठा है जो उन्हें बड़े ध्यान से देखे जा रहा है। मांसाहारी पशु होने के बावजूद, शेर ने मां पर हमला नहीं किया। यह बात मां पार्वती को आश्चर्यजनक लगी। फिर उन्हे अपनी दिव्य शक्ति से यह ज्ञात हुआ की वह शेर तो तपस्या के दौरान भी उनके साथ वहीं पर बैठा था। और तब मां पार्वती नें उस शेर को आशीष दे कर अपना वाहन बना लिया। और तभी से माँ दुर्गा जो माँ पार्वती का ही शक्ति स्वरुप हैं, शेर की सवारी करती हैं।
फ्रेंड्स, उम्मीद है की आपको ये जानकारी पसंद आयी होगी, ऐसी ही और जानकारियां हम आगे भी आपके लिए लाते रहेंगे।
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क्यों मनाते हैं नवरात्रि | Navratri Celebration
देवताओं ने बहुत प्रयत्न किया लेकिन महिषासुर को युद्ध में पराजित नहीं कर पाए। तब महिषासुर का वध करने के लिए देवी दुर्गा का अवतरण हुआ सभी देवो ने अपनी अमोघ शक्तियों को एक जगह इकट्ठा करके आदिशक्ति का सृजन किया, और उन्हें दुर्गा का स्वरुप दिया। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश ,विष्णु के तेज से आठ भुजाये, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितम्ब ,ब्रह्मा के तेज से चरण, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से नेत्र ,एवं अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न भिन्न अंग बने। देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए जिससे वह अति बलवान हो गईं। नौ दिनों तक लगातार माँ दुर्गा का महिषासुर से युद्ध संग्राम चला और अन्त में नवें दिन महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा 'महिषासुरमर्दिनी' कहलाईं। तभी से माँ दुर्गा की आराधना और उनसे शक्ति-सिद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है।
एक वर्ष में चार बार होता हैं नवरात्रि | Navratri
नवरात्रि साल में दो बार मनाया जाता है। एक नवरात्रि गर्मी की शुरुआत पर चैत्र में और दूसरा सर्दियों की शुरुआत पर आश्विन माह में।गुप्त नवरात्रि
इसके आलावा साल में दो बार गुप्त नवरात्र भी होते हैं, जो सिद्धियां प्राप्त करने के लिए मनाये जाते हैं, माघ शुक्ल पक्ष में और आषाढ़ शुक्ल पक्ष में। गुप्त नवरात्रि में आमतौर पर ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं किया जाता अपनी साधना को गोपनीय रखा जाता है।माँ दुर्गा क्यों करती हैं शेर की सवारी
शेर माँ दुर्गा का वाहन कैसे बना इसके पीछे भी एक रोचक प्रसंग है। एक धार्मिक और पौराणिक कथा के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। हजारों वर्षों तक चली इस कठोर तपस्या के फल स्वरूप मां पार्वती नें शिव जी को पति रूप में पा लिया, पर तप के प्रभाव से वह खुद सांवली पड़ गयी। एक दिन शिवजी नें मां पार्वती को हास्य- मज़ाक में 'काली' कह दिया, यह बात माँ पार्वती को इतनी बुरी लग गयी की उन्होने कैलाश त्याग दिया और वन में चली गयी। वन में जा कर उन्होने घोर तपस्या की। उनकी इस कठिन तपस्या के दौरान वहां एक भूखा शेर, उनका भक्षण करने के इरादे से आया। लेकिन तपस्या में लीन मां पार्वती का तेज देख कर वह शेर चमत्कारिक रूप से वहीं रुक गया और माँ पार्वती के सामने बैठ गया। और उन्हे निहारता रहा।
मां पार्वती नें तो हठ ले ली थी की जब तक वह पुनः गोरी और रूपवान नहीं हो जाएंगी तब तक तप करती ही रहेंगी। शेर भी भूखा प्यासा उनके सामने बरसों तक बैठा रहा। अंत में शिवजी प्रकट हुए और मां पार्वती को रूपवती होने का वरदान दे कर अंतरध्यान हो गए। शिव जी के जाने के बाद माँ पार्वती ने गंगा स्नान किया तब उनके अंदर से एक और देवी प्रकट हुई, जिनका स्वरूप श्याम अर्थात सांवला था उन्हे 'कौशकी' नाम से जाना गया। और माँ पार्वती 'गोरी' बन गईं। और तभी से उनका नाम गौरी पड़ा।
जब मां पार्वती वापस लौट रही थीं तब उन्होने देखा की वहां एक शेर बैठा है जो उन्हें बड़े ध्यान से देखे जा रहा है। मांसाहारी पशु होने के बावजूद, शेर ने मां पर हमला नहीं किया। यह बात मां पार्वती को आश्चर्यजनक लगी। फिर उन्हे अपनी दिव्य शक्ति से यह ज्ञात हुआ की वह शेर तो तपस्या के दौरान भी उनके साथ वहीं पर बैठा था। और तब मां पार्वती नें उस शेर को आशीष दे कर अपना वाहन बना लिया। और तभी से माँ दुर्गा जो माँ पार्वती का ही शक्ति स्वरुप हैं, शेर की सवारी करती हैं।
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