मृत्यु ही जीवन का एकमात्र सत्य है, जो पैदा हुआ है उसे एक दिन मरना ही है। लेकिन हम बात कर रहे हैं वृद्ध हो कर स्वयं मरने की। ऐसा क्या है जिसकी वजह से लोग बूढ़े होते है और अंत में पता चलता है कि शरीर तो है, पर अब प्राण नहीं रहे। किसी दुर्घटना में जान गँवा देना या किसी और कारणों से समय से पूर्व मर जाना एक अलग बात है। आखिर, ये कैसे होता है? The Algorithm Of Death काम कैसे करता है? आईये जानते हैं।
हमारा शरीर छोटी छोटी कोशिकाओं अर्थात Cells से मिलकर बना है। और हर कोशिका के केन्द्र में हमारे शरीर का ब्लू प्रिंट “DNA” पाया जाता है। आपके शरीर की लम्बाई चौड़ाई, रंग, और छोटी से छोटी चीज का निर्धारण, आपका DNA करता है। ये DNA ही हमारी आदतों और पर्सनालिटी को निर्धारित करता है।
हमारी body cells यानि शरीर की कोशिकाएं अपनी खुद की कॉपी तैयार करती जाती हैं और नष्ट होती जाती हैं। अर्थात पुरानी कोशिकाएं मरती जाती है और नयी कोशिकाएं जन्म लेती है। शरीर के स्वास्थ्य और हीलिंग का यही राज है। हर बार, जब आपकी कोशिकाएं अपनी कॉपी तैयार करती है तो कोशिका में मौजूद DNA भी कॉपी होता है। DNA को डैमेज होने से बचाने के लिए DNA के दोनों सिरों पर DNA कैप्स लगे होते है जिन्हें 'टेलोमेर'(Telomere) कहते हैं।
कोशिका के विभाजन के साथ साथ हर बार DNA कैप यानि टेलोमेर छोटा होता चला जाता है और एक समय ऐसा आता है जब टेलोमेर खत्म हो जाता है। और तब कोशिकाओं का विभाजन रुक जाता है, जिस से पुरानी कोशिकाएं तो मरती जाती है और नयी कोशिकाएं बनना बंद हो जाता है। व्यक्ति को बुढ़ापा आने लगता है और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता धीरे धीरे समाप्त होने लगती है, अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर देते हैं और एक दिन मृत्यु हो जाती है।
अर्थात ये टेलोमेर ही मृत्यु के निर्धारण की मुख्य कड़ी है। ये टेलोमेर कितने लम्बे होगे इसका निर्धारण व्यक्ति के माँ-बाप से होता है, जन्म के साथ ही इन टेलोमेर की लम्बाई निश्चित हो जाती है और दुनिया में आते ही टेलोमेर रुपी बायोलॉजिकल डेथ क्लॉक का काउंट डाउन शुरू हो जाता है।
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