सुडौल नाक चेहरे की खूबसूरती को कई गुना बढ़ा देती है। सांस लेने के लिए स्वस्थ नाक का होना बेहद ही आवश्यक है, वहीं स्वस्थ नाक हो तो विभिन्न प्रकार की सुगंधों का आनंद देती है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी नाक में दो छिद्र क्यों होते हैं जबकि ये सभी काम केवल एक छिद्र से भी किये जा सकते थे। आइए जानते हैं की क्या कारण है, जो हमारी नाक में दो छिद्र होते हैं।
सभी गंध एक जैसी नहीं होती है। कुछ गंध ऐसी होती हैं जिन्हे महसूस करने के लिए हमें गहरी सांस के साथ अधिक एयर लेने की आवश्यकता होती है। जबकि कुछ गंध को लेने के लिए हमारी नाक को कम समय और कम एयर की जरूरत होती है, वरना ऐसी गंध गहरी सांस और अधिक एयर में खो सकती है और हम उस गंध को ना हीं समझ पाएंगे और न पहचान पाएंगे। हमारी नाक के दोनों छिद्रों की एयर-फ्लो की गति अलग-अलग होने के कारण ही हम एक ही नाक से कई तरह की गंध के बीच अंतर को महसूस कर सकते है। हमारी नाक ऐसी गंधों के प्रति उदासीन हो जाती है जिन्हें हम प्रतिदिन सूंघते हैं। इसे न्यूरल अडॉप्टेशन यानी तंत्रिका अनुकूलन कहते हैं। हमारी नाक उन गंधों की पहचान तुरंत कराती है जो हमारे लिए नई होती है।
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नई गंधों की पहचान और उनके बीच अंतर -
हमारी दोनों नासिका छिद्र एक जैसे दिखते है, लेकिन वह एक ही तरह से काम नहीं करते हैं। एक छिद्र का एयर-वे दूसरे छिद्र के एयर-वे की तुलना में छोटा होता है, हवा नासिका के माध्यम से धीरे-धीरे जाती है। और हम चीजों की गंध ले सकते हैं। क्योंकि हवा में मौजूद कण हमारी नाक में घुस जाते है।सभी गंध एक जैसी नहीं होती है। कुछ गंध ऐसी होती हैं जिन्हे महसूस करने के लिए हमें गहरी सांस के साथ अधिक एयर लेने की आवश्यकता होती है। जबकि कुछ गंध को लेने के लिए हमारी नाक को कम समय और कम एयर की जरूरत होती है, वरना ऐसी गंध गहरी सांस और अधिक एयर में खो सकती है और हम उस गंध को ना हीं समझ पाएंगे और न पहचान पाएंगे। हमारी नाक के दोनों छिद्रों की एयर-फ्लो की गति अलग-अलग होने के कारण ही हम एक ही नाक से कई तरह की गंध के बीच अंतर को महसूस कर सकते है। हमारी नाक ऐसी गंधों के प्रति उदासीन हो जाती है जिन्हें हम प्रतिदिन सूंघते हैं। इसे न्यूरल अडॉप्टेशन यानी तंत्रिका अनुकूलन कहते हैं। हमारी नाक उन गंधों की पहचान तुरंत कराती है जो हमारे लिए नई होती है।
सांस लेने की क्षमता -
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक शोध किया और पाया कि पूरे दिन हमारे दोनों नासिका छिद्रों में से एक नासिका छिद्र दूसरे की तुलना में ज्यादा तेजी से सांस लेती है। आयुर्वेद भी यही कहता है कि नाक के दो स्वर होते हैं जिसमे से एक समय पर कोई एक स्वर ही अधिक एक्टिव रहता है, जबकि दूसरा स्लो रहता है। यानी हमेशा दोनो नासिका छिद्रों में से कोई एक छिद्र बेहतर होती है तो एक थोड़ा कम सांस खींचती है। ऐसा सांस हमारे सांस लेने की क्षमता और फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी होता है।सूंघने की क्षमता बेहतर बनती है -
जिस तरह हम दो कानों से ज्यादा बेहतर सुन सकते हैं, दो आंखों से बेहतर तरीके से देख सकते हैं वैसे ही हम नाक के दो छेदों से बेहतर तरीके से सूंघ सकते हैं। दो छेद चीजों को बेहतर सूंघने में मदद करते हैं। क्या आपने कभी गौर किया है कि दिन भर में एक नासिका छिद्र, दुसरे की तुलना में हवा को अधिक सक्षम तरीके से खींचता है। यह मानवता की ओर से एक शारीरिक गलती नहीं है, वास्तविकता में यह एक अच्छी बात है।----------------------------------
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