रतन सिंह के दरबार में कई प्रतिभाशाली लोग थे जिनमे से 'राघव चेतन' नाम का एक संगीतकार भी था। राघव चेतन के बारे में कम लोगो को ही पता था कि वो काला जादू भी करता है। वो अपनी इस प्रतिभा का उपयोग युद्ध या आपातकाल में दुश्मन को मार गिराने में करता था। एक दिन राघव चेतन का काले जादू से बुरी आत्माओ को बुलाने का कृत्य रंगे हाथो पकड़ा गया। इस पर रावल रतन सिंह ने उग्र होकर उसका मुँह काला कर और गधे पर बिठाकर अपने राज्य से निकाल दिया। रतन सिंह की इस कठोर सजा के कारण राघव चेतन उसका दुश्मन बन गया। उसने रतन सिंह से बदला लेने की ठान ली, और दिल्ली पहुँच गया। उस समय दिल्ली का सुल्तान 'अलाउद्दीन खिलजी' था। खिलजी से मिलने के लिए उसने एक योजना बनाई, और दिल्ली के पास एक जंगल में रुक गया जहाँ पर खिलजी अक्सर शिकार के लिए आता था। एक दिन जब उसको पता चला कि खिलजी का शिकार दल जंगल में प्रवेश कर रहा है, तो राघव चेतन ने अपनी बांसुरी से मधुर स्वर निकालना शुरू कर दिया।
खिलजी के शिकार दल के लोग इस विचार में पड़ गये कि इस घने जंगल में इतनी मधुर बांसुरी कौन बजा सकता है। राघव चेतन को सैनिको ने सुल्तान खिलजी के समक्ष प्रस्तुत किया तो खिलजी ने उसकी प्रशंसा करते हुए उसे अपने दरबार में आने को कहा। चालाक राघव चेतन ने उसी समय खिलजी से पूछा कि "आप मुझ जैसे साधारण संगीतकार को क्यों बुलाना चाहते है जबकि दुनिया में कई अत्यधिक सुंदर वस्तुए है।"
राघव चेतन ने सुल्तान खिलजी को चित्तौड़ की रानी पद्मावती की सुन्दरता के बारे में बताया, जिसे सुनकर खिलजी की वा सना जाग उठी। प्रसिद्द सुन्दरी पद्मावती की एक झलक पाने के लिए खिलजी बेताब हो गया। उसने चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को संदेसा भेजा कि वो रानी पदमिनी को अपनी बहन समान मानता है और उससे मिलना चाहता है। रानी पदमिनी खिलजी को कांच में अपना चेहरा दिखाने के लिए राजी हो गयी। रानी पद्मावती के सुंदर चेहरे को कांच के प्रतिबिम्ब में जब अलाउदीन खिलजी ने देखा तो उसने सोच लिया कि रानी पद्मावती को अपनी बनाकर रहेगा। इसी दुर्भावना के साथ उसने रतन सिंह को अपहरण कर बंदी बना लिया और अपने शिविर में रख लिया, और पद्मावती को पाने की मांग करने लगा। रतन सिंह के सेनापति गोरा और बादल ने खिलजी को हराने के लिए एक चाल चलते हुए संदेसा भेजा कि अगली सुबह रानी पद्मावती, सुल्तान खिलजी को सौंप दी जाएँगी।
सुबह होते ही 150 पालकियां चित्तौड़ किले से खिलजी के शिविर की तरफ रवाना की गयीं। पालकियों को आता देखकर रतन सिंह ने सोचा, कि ये पालकिया किले से आयी है और उनके साथ रानी पद्मिनी भी यहाँ आयी होगी, वो अपने आप को बहुत अपमानित समझने लगा। लेकिन उन पालकियो में ना ही रानी थी और ना ही दासियाँ। अचानक से उसमे से सशस्त्र सैनिक निकले और रतन सिंह को छुड़ा लिया। सुल्तान खिलजी ने गुस्से में चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया। खिलजी की विशाल सेना के साथ युद्ध के दौरान लड़ते हुए राजा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। ये सूचना सुनकर पद्मिनी ने सोचा कि अब चित्तोड़ की औरतो के पास दो विकल्प हैं या तो वो जौहर के लिए प्रतिबद्ध हो या खिलजी की सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दें।
सभी महिलाओ का पक्ष जौहर की तरह था। एक विशाल चिता जलाई गयी और रानी पदमिनी के बाद चित्तोड़ की सारी औरते उसमे कूद गयी और इस प्रकार दुश्मन बाहर खड़े देखते रह गये। अपनी महिलाओ की मौत पर चित्तोड़ के पुरुषो ने साका प्रदर्शन करने का प्रण लिया जिसमे प्रत्येक सैनिक केसरी वस्त्र और पगड़ी पहनकर दुश्मन सेना से तब तक लड़ा जब तक कि वो सभी खत्म नही हो गये। विजयी सेना ने जब किले में प्रवेश किया तो उनको राख और जली हुई हड्डिया मिली। जिन महिलाओ ने जौहर किया उनकी याद आज भी लोकगीतों में जीवित है।
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