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longyearbyen |
सर्दियों के मौसम में यहां का तापमान इतना कम हो जाता है कि जिंदगी मुश्किल हो जाती है। लेकिन फिर भी लगभग 2000 लोगों की आबादी वाले इस शहर में लोगों को मरने की इजाजत नहीं है।
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प्रशासन द्वारा पाबंदी लगाए जाने के बाद पिछले 70 साल से यहां कोई मौत नहीं हुई है। दरअसल, इस पाबंदी के पीछे वजह काफी बड़ी है। बता दें, यहां पड़ने वाली कड़ाके की ठंड की वजह से यहां डेड बॉडी सालों तक ज्यों की त्यों पड़ी रहती है ठंड की वजह से वह न गलती है और न ही सड़ती है और यही वजह कि सालों तक शव वैसे का वैसा ही रहता है।
एक शोध में यह पाया गया कि साल 1917 में जिस शख्स की मौत इनफ्लुएंजा की वजह से हुई उसके शव में इनफ्लुएंजा के वायरस जस के तस पड़े थे। यहां बता दें, इनफ्लुएंजा एक विशेष समूह के वायरस के कारण मानव समुदाय में होनेवाला एक संक्रामक रोग है। इस बीमारी में इंसान बुखार की चपेट में आ जाता है और वह बहुत ज्यादा कमजोर हो जाता है।
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बीमारी फैलने का खतरा मंडराने के बाद यहाँ के प्रशासन ने इस शहर में मौत पर पाबंदी लगा दी। ऐसे में यहां जैसे ही कोई मरने वाला होता है या कोई इमरजेंसी आती है, तो उस व्यक्ति को हेलिकॉप्टर द्वारा देश के दूसरे स्थानों पर ले जाया जाता है, और मरने के बाद वहीं पर उसका अंतिम संस्कार किया जाता है।
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